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सोमवार को 17:15 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र त्रिखा
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|संग्रह=
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<poem>
धड़कनों का हिसाब रखते हैं
ज़ेहन में माहताब रखते हैं
अब कोई भी सवाल पूछो यक्ष
अब तो सबका जवाब रखते हैं
आंधियाँ इसको क्या बुझाएँगी
हाथ में आफताब रखते हैं
एक मुट्ठी तनी ही रहती है
दूसरी में गुलाब रखते हैं
</poem>