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<poem>
यारो कुछ तो वक़्त लगेगा
धीरे-धीरे घाव भरेगा

अभी रूह में सन्नाटा है
अभी परिंदा पर तोलेगा

सहमा-सहमा-सा मौसम है
धीरे-धीरे फूल खिलेगा

भंगड़ा-गिद्धा भूल गए थे
हौले-हौले पांव खुलेगा

लोग वही हैं वही हवा है
धीरे-धीरे डर उतरेगा

बरसों-बरसों शव ढोए हैं
अब दिल सदमों से उबरेगा
</poem>
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