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सोमवार को 17:17 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र त्रिखा
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|संग्रह=
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<poem>
जीने को कुछ मानी दे
ऐसी एक कहानी दे
सात समन्दर लेकर आ
प्यासा हूँ कुछ पानी दे
धूप अभी तक नंगी है
इसको चूनर धानी दे
भीगा है मन आएगा
कोई गज़ल पुरानी दे
दे कुछ तू रब्ब जैसा है
लम्हें कुछ तूफानी दे
</poem>