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|संग्रह=बीड़ी बुझने के क़रीब / मानबहादुर सिंह
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<poem>
राजा की सनक
ग्रहों की कुदृष्टि
मौसमों के उत्पात
बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, शत्रु, भय
प्रिय बिछोह
कम नहीं हैं ये दुख आदमी पर

ऊपर से
जब घर जलते हैं
तो आदमी के दिन जलते हैं
फ़सलें डूबती हैं
आदमी के सपने डूब जाते हैं
पशु मरते हैं
आदमी के हाथ-पाँव कटते हैं
ईश्वर लड़ते हैं
तो आदमी ही मरते हैं ।

आदमी से ज़्यादा दुखी
कौन है इस संसार में ?

सारी धरती के दुख
आख़िर इसको ही सहने पड़ते हैं ।
</poem>
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