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|रचनाकार='कैफ़' भोपाली
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'''’क़ैफ़ भोपाली के लिखे इस गीत को कमाल अमरोही ने फ़िल्म ’शंकर हुसैन’ में अपने नाम से शामिल कर दिया था।'''
<poem>
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत ख़ूबसूरत मगर सांँवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर
सरहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख़्वाब दिन के मुण्डेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख़्ता धीमे-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी

चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा
मगर उँगलियाँ कँप-कँपाती तो होंगी
क़लम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें क़लम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दाँतों में उँगली दबाती तो होगी

ज़ुबाँ से मगर उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीं पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
</poem>
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