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शनिवार को 15:12 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार='कैफ़' भोपाली
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'''’क़ैफ़ भोपाली के लिखे इस गीत को कमाल अमरोही ने फ़िल्म ’पाकीज़ा’ में अपने नाम से शामिल कर लिया था।'''
<poem>
मौसम है आशिकाना
ऐ दिल कहीं से उनको ऐसे में ढूँढ़ लाना
कहना के रुत जवा है और हम तरस रहे हैं
काली घटा के साए बिरह को डस रहे है
डर है न मार डाले सावन का क्या ठिकाना
मौसम है आशिकाना
सूरज कहीं भी जाए तुम पर न धूप आए
तुम पर न धूप आए, तुमको पुकारते हैं इन गेसुओं के साए
आ जाओ मैं बना दूँ पलकों का शामियाना
मौसम है आशिक़ाना
फिरते है हम अकेले, बाहों में कोई ले ले
आख़िर कोई कहाँ तक तनहाइयों से खेले
दिन हो गए है ज़ालिम, रातें है क़ातिलाना
मौसम है आशिक़ाना
ये रात, ये ख़ामोशी, ये ख़्वाब से नज़ारे
जुगनू हैं या ज़मी पर उतरे हुए हैं तारे
बेखाब मेरी आँखे मदहोश है ज़माना
मौसम है आशिक़ाना
ऐ दिल कहीं से उनको ऐसे में ढूँढ़ लाना
</poem>