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दीप क्या है , सिर्फ़ मिट्टी से बना है
यह उजालों की सही आराधना है।
एक चादर तान ली काली गागन गगन ने
फिर भी सीना दीप का निडर तना है ।
अँधेरों के हौसले भी देखना है।
आलोक की धारा , धरा पर बह उठी
हर आँख में आलोक ही आँजना है।
'''-0-[8-09-1985: मान्यवर दैनिक जौनपुर 1-1-86,उजाला जुलाई 86]'''
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