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14 अक्टूबर {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अमरकांत कुमर
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<poem>
मैं तुम्हारे गंध-वन में मुस्कुराता हूँ
मैं तुम्हारे छन्द-लय में गुनगुनाता हूँ,
मैं तुम्हारे झील में यों डूब जाता हूँ
दे तुम्हे आवाज़ ख़ुद को भूल जाता हूँ।
तुम हमारी हर शिरा में तार बजती हो
तुम हमारे रोम के हर द्वार सजती हो,
तुम हमारे हृदय में स्नेहाँे की धड़कन हो
तुम पसीने में सुगन्धि-सी लरजती हो।
मैं तेरे आलिंगनों में झूल जाता हूँ ॥ मैं तुम्हारे...
मैं पिपासित प्राण, तुम वारिद की हो पाँती
फूल की घाटी है मन, तुम गंध शरमाती
मैं शलभ गर तुम सुलगती काँपती बाती
मैं बहकता पवन, तुम डाली लचक जाती
मैं तुम्हारा स्पर्श पाकर फूल जाता हूँ॥ मैं तुम्हारे...
तुम नशीली चाँदनी हो मैं विरुध तनता
तुम फुहारे सावनी मैं इन्द्रधनु बनता
तुम सुनहरी सुबह हो, मैं कमलवन खिलता
तुम सयानी रौशनी, मैं बिम्ब हूँ बनता
मैं मेरा अस्तित्व तुझमें भूल जाता हूँ॥ मैं तुम्हारे...
एषणाएँ साथ चलतीं पर तेरे आगे-
एक तेरी चाह बचती, सब तुरत भागे
जिन्दगी की राह सब मैं भूल जाता हूँ
एक तुम्हारी तृषा याकि तृप्ति ही जागे
मैं तुम्हारे प्रीति-सर के कूल जाता हूँ॥ मैं तुम्हारे...
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