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आने वाला कल/ प्रताप नारायण सिंह

2 bytes added, शनिवार को 16:57 बजे
नदियाँ स्वयं की भी
प्यास नहीं बुझा पाएँगी।
 
आज जहाँ हँसी बसती है,
वहाँ धूल नाचेगी।
एक बूँद जल,
एक बच्चे की हँसी।
 
शहर खड़े तो रहेंगे,
पर उनमें जीवन न होगा,