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<span class="upnishad_mantra">
:::अन्धं तमः प्रविशन्ति ये सम्भूतिमुपासते।<br>:::ततो भूय इव ते तमो य उ संभूत्या रताः ॥१२॥<br>
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<span class="mantra_translation">
:::जो मरण धर्मा तत्त्व की, अभ्यर्थना करते सदा,<br>:::अज्ञान रुपी सघन तम में, प्रवेश करते हैं सर्वदा।<br>:::जिसे ब्रह्म अविनाशी की पूजा, भाव का अभिमान है,<br>:::वे जन्म मृत्यु के सघन तम में, विचरते हैं विधान है॥ [१२]<br><br>
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<span class="upnishad_mantra">
:::संभूतिं च विनाशं च यस्तद वेदोभयम सह।<br>:::विनाशेन मृत्युम तीर्त्वा सम्भुत्या मृतमश्नुते ॥१४॥<br>
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<span class="mantra_translation">
:::जिन्हें नित्य अविनाशी प्रभु का मर्म ऋत गंतव्य है,<br>:::उन्हे अमृतमय परमेश का अमृत सहज प्राप्तव्य है,<br>:::जिन्हें मरण धर्मा देवता का, मर्म ही मंतव्य है,<br>:::निष्काम वृति से विमल मन और कर्म ही गंतव्य है॥ [१४]<br><br>
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