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यही ॐ अथ जन्म-मृत्यु के मूल भय से पवन चलता सूर्य भी<br>होता उदित और अस्त , अग्नि व् इन्द्र संचालित सभी,<br>इसी भय से ही मृत्यु होती, प्रवृत अपने कर्म में,<br>अथ ब्रह्म संचालक नियम का, रखता सब स्व धर्म में॥ [ १ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">यदि कोई असाधारण युवक और आचरण भी श्रेष्ठ हो,<br>वेदज्ञ शासन में कुशल , धन धान्य श्री भी यथेष्ट हो.<br>दृढ़ इन्द्रियों और अंग सब बलवान ओजस्वी रहे.<br>आनंद की मीमांसा में, तो श्रेष्ठतम उसको कहें॥ [ २ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो भी मनुज के लोक संबन्धी शतं आनंद हैं,<br>समकक्ष उसके तो एक मनु गन्धर्वों का आनंद है .<br>मनुलोक और गन्धर्व लोकों के तो सुख वेदज्ञ को, ॐ विश्व <br>हैं सहज प्राप्त स्वभाव से, संभाव्य सब श्रुति विज्ञ को॥ [ ३ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो भी मनुज गन्धर्वों के सब एक सौ आनंद हैं ,<br>वह देव गन्धर्वों के केवल एक सुख मानिंद हैं .<br>निःस्पृह विमल सुख राशि मिलती सात्विक श्रुति विज्ञ को,<br>हो सहज ही संभाव्य अथ प्राप्तव्य हैवेदज्ञ को॥ [ ४ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो भी शतं सुख देव गन्धर्वों के कतिपय कथित हैं , ॐ अनुकृति सिद्ध <br>वे चिरस्थायी पितृ लोक के पितरों के सुख विदित हैं ,<br>समकक्ष सौ सुख भी विरक्त को, करते न आसक्त हैं,<br>वे विज्ञ को आनंद , वे सब स्वतः प्राप्त हैं , व्यक्त हैं॥ [ ५ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">अथ चिरस्थायी लोक पितरों के, जो भी आनंद हैं,<br>वह आजानज नाम सुख का, देवों का आनंद है.<br>उस लोक तक के भोगों की इच्छा नहीं , जिसकी कभी,<br>शुभ आनंद सिद्ध स्वभाव श्रोत्रिय , विज्ञ ऋत् निस्पृह सभी॥ [ ६ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो नाम आजानज विदित वे देवों के आनंद हैं,<br>सम कर्मनामक देवों के वे तो शतं मानिंद हैं.<br>ऐसे शतं आनंद निधि की कामना से रहित जो, अध्धयन यक्ष आदि में<br>वेदज्ञ श्रोत्रिय को वही आनंद मिलता , ॐ रिद्धि प्रसिद्ध विरत जो॥ [ ७ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो कर्म देवानां देवों के शतं आनंद हैं ,<br>समकक्ष सौ सुख राशि की तुलना में एक आनंद है.<br>कह ॐ अमरों की भी सुखराशी की नहीं चाहना वेदज्ञ को,<br>सब सहज ही ऋत्विक अध्वर्युः प्राप्तव्य उनको, मंत्र प्रतिगर चाहते जो अज्ञ को॥ [ ८ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">जो देवताओं के शतं आनंद हैं वर्णित यथा,<br>समकक्ष सौ आनंद की , सुखराशि इन्द्र का कहेंसुख तथा.<br>वेदों किंचित कदाचित भी न विचलित , कर सके वेदज्ञ को,<br>मिलता स्वतः ही सहज सुख , जो जानते सर्वज्ञ को॥ [ ९ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">यह जो शतं आनंद इन्द्र के अध्ययन उससे भी अतिशय महे,<br>आनंद बढ़ कर सौ गुना, यह सुख बृहस्पति का अहे.<br>पर जो बृहस्पति तक के भोगों में भी निःस्पृह विरल है,<br>उस वेद वेत्ता को स्वतः ही प्राप्त सुख सब सरल हैं॥ [ १० ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">ये जो बृहस्पति के शतं आनंद हैं अतिशय महे,<br>उससे भी बढ़ कर प्रजापति के , सुख विरल अद्भुत अहे.<br>पर जो प्रजापति तक के भोगों , में भी निःस्पृह विरल हो,<br>उस परम श्रोत्रिय को स्वतः सुख प्राप्त है और सरल हो॥ [ ११ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">यह जो प्रजापति के शतं सुख राशि हैं आनंद हैं,<br>वह ब्रह्मा के तो एक सुख समकक्ष का आनंद है.<br>ऐसे परम आनंद से प्रथम वेदज्ञ जो भी विरत है , ओंकार <br>निष्कामी को आनंद ऐसा , सहज मिलता सतत है॥ [ १२ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">परमात्मा जो है मनुष्यों में वही आदित्य में,<br>एकमेव अन्तर्यामी ब्रह्म ही ब्राह्मण कहेबसता नित्य अनित्य में.<br>वह अन्न, प्राण मनोमय, विज्ञानमय , आनंद को,<br>तत्वज्ञ क्रमशः प्राप्त हो, अथ ब्रह्म सच्चिदानंद को॥ [ १३ ]<br><br></span> '''नवम अनुवाक'''<br><span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">मन सहित वाणी इन्द्रियां भी लौटती जाकर जहों,<br>उस ब्रह्म के आनंद ज्ञाता को भला भय हो कहों.<br>वह सर्वथा निर्भय सभी, संताप से भी मुक्त हो,<br>उसको अभय अनुदान हो, यदि ब्रह्म से संयुक्त हो॥ [ १ ]<br><br></span> <span class="upnishad_mantra"></span> <span class="mantra_translation">तत्वज्ञ सात्विक वृतियों से ही दुःख सुख सम्यक करे,<br>अथ पाप पुण्यों का आचरण, सीमा से हो जाता परे .<br>उसे लोभ, भय जीवन मरण संताप, मोह भी शेष है,<br>तत्वज्ञ इस विधि आत्मा की, रक्षा करता विशेष है॥ [ २ ]<br><br>
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