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दिग्भ्रमित बयार / इला कुमार

No change in size, 04:18, 8 दिसम्बर 2008
अनगढ़ कल्पना का द्वार
हवा ठक ठक का ती ठकठकाती रही
हलकी सी टिकी सांकल की धकेल कर
भीतर घुस आने का साहस
 
वह नहीं जुटा पाई थी
 
सिर्फ़ अपने झनकते स्पर्श से
 
डरती बुझाती रही हमें
 
आसपास बिखरे
 
सत्यों को स्वीकारने का साहस
 
उस दिग्भ्रमित बयार में नहीं था
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