गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
एक युग की स्वीकारोक्ति / अजित कुमार
No change in size
,
09:14, 19 दिसम्बर 2008
तुमको संबोधित कर कितने ही गीत लिखे,
फूलों में, ऊषा में,
कण
कन
-
कण
कन
में छवि देखी,
हर समय तुम्हारे ही स्वप्नों में पागल हो
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits