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{{KKRachna
|रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम'
}}
<Poem>
सफर में तुम चले हो
ठीक अपना सामान कर लो
अपने थैले में प्रिय
यादों के मेहमान धर लो
जब कभी अकुलाये मन
याद हो आये सघन
धड़कन के साथ-साथ
साँसों का हो विचलन
तोड़ दर्पंण तब प्रिये तुम
मेरे नयनो में सँवर लो
टूटती हर आस हो
एक अबुझ से प्यास हो
आग बरसाता हुआ
बेरहम आकाश हो
मधुपान हेतु प्रिय तुम
छोड़कर चषक मेरे अधर लो
</poem>
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|रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम'
}}
<Poem>
सफर में तुम चले हो
ठीक अपना सामान कर लो
अपने थैले में प्रिय
यादों के मेहमान धर लो
जब कभी अकुलाये मन
याद हो आये सघन
धड़कन के साथ-साथ
साँसों का हो विचलन
तोड़ दर्पंण तब प्रिये तुम
मेरे नयनो में सँवर लो
टूटती हर आस हो
एक अबुझ से प्यास हो
आग बरसाता हुआ
बेरहम आकाश हो
मधुपान हेतु प्रिय तुम
छोड़कर चषक मेरे अधर लो
</poem>