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तीर्थयात्री / यूनीस डिसूजा

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|रचनाकार=यूनीस डिसूजा
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<Poem>
पहाड़ियाँ रेंग रही हैं रक्षक-वाहनों से
मद्धिम रोशनियाँ घूमती हैं, ऊपर-नीचे
पर्वत-श्रेणियों पर
प्रस्थित फिर किसी दीमक लगे
शहर की ओर।
ललछौंही देवशिला
सबको गुज़रते हुए देखती रहती है।
एक बार वह बोली थी,
रक्तवर्णी पाषाण खंड
साक्षी हैं उस के।
देवशिला। मैं एक तीर्थयात्री हूँ,
मुझे बताओ-
दिल को राहत कहाँ मिलती है?

'''मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनामिका
</poem>
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