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अपवाद भय या कीर्ति प्रेम से निरत न हो,
य्दि यदि ख़ूब सोच-समझ कर मार्ग चुन लिया।
प्रेरित हुए हो सत्य के विश्वास, प्रेम से,
तो धार्य नियम, शौर्य से आगे चले चलो।
निर्बल है भृकुटि-भंग वह तुम आँख मिला लो,
और ध्यान धर जगदीश का आगे चले चलो।
 
'''रचनाकाल : 1914
</poem>
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