Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
|संग्रह=
}}
हमें अपने घर से टूट जाना चाहिए<br/>
टहनी पर खिले गुलाब की तरह इच्छित होकर<br/>