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'''लेखन वर्ष: २००४
मेरी रूह को तख़लीक़1 करके 1. सृजित
किस राह में खो गये हो तुम
लफ़्ज़ मेरे अजनबी लगते हैं
जाने किसके हो गये हो तुम
जब भी रात में शग़ाफ़2 आता है 2. संध्या, Crack
खिलती सहर के उफ़क़ दिखते हैं
कितने ही ख़ूबसूरत क्यों न हो
तक़दीर के बे-रब्त टुकड़े हैं कुछ
जिनको समेटता हूँ आठों पहर
 
1. सृजित 2. संध्या, Crack
</poem>