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मेरी रूह को तख़लीक़ करके/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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03:22, 29 दिसम्बर 2008
<poem>
'''लेखन वर्ष: २००४
मेरी रूह को तख़लीक़1 करके
जिनको समेटता हूँ आठों पहर
1.
'''शब्दार्थ : तख़लीक़=
सृजित
2.
; शग़ाफ़=
संध्या, Crack
'''रचनाकाल : 2004
</poem>
अनिल जनविजय
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