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अकाल और उसके बाद / नागार्जुन

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}}
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:नागार्जुन]]
 
<Poem>
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
 
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
 
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
 
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
 
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
 
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
 
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।
रचनाकाल : 1952</poem>
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