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[[Category:ख़्वाजा मीर दर्द]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:गज़लग़ज़ल]]
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तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले ।
 
जिसलिए आये थे हम सो कर चले ।।
 
ज़िंदगी है या कोई तूफान है,
 
हम तो इस जीने के हाथों मर चले ।
 
शमा के मानिंद हम इस बज़्म में,
 
चश्मे-नम छाये थे, दामन तर चले ।
 
साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,
 
जब तलक बस चल सके साग़र चले ।
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