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|संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल
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 <Poem>
हम देखते हैं फूल ।
 
लिखता है पेड़ भी कुछ धूप में
 
शब्द रिसते हैं रंगों में ।
 
एक टहनी का कंठ फूटता है
 
चिड़िया ।
 
भुरभुरी मिट्टी, गीली मिट्टी
 
अचानक सुनती है कुछ
 
हम सुन नहीं पाते
 
अचरज से देखते उसे कुछ
 
सुनते हुए ।
 
(हज़ारों सालों की स्मृति)
 
कोशिश करते हम भी ।
 
कोशिश है कविता ।
</poem>
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