Changes

|संग्रह=अधूरी चीज़ें तमाम / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
सोचता है सबसे पिछली क़तार
 
का आदमी
 
सारी अगली क़तारों के बारे में ।
 
कहता नहीं,
 
सोचता है--
 
हम सब हो सकते थे
 
एक ही क़तार में--
 
बस आदमी !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits