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सबसे पिछली क़तार का आदमी / प्रयाग शुक्ल
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12:01, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=अधूरी चीज़ें तमाम / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
सोचता है सबसे पिछली क़तार
का आदमी
सारी अगली क़तारों के बारे में ।
कहता नहीं,
सोचता है--
हम सब हो सकते थे
एक ही क़तार में--
बस आदमी !
</poem>
अनिल जनविजय
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