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रात को मोर / प्रयाग शुक्ल

No change in size, 12:35, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
बोलते हैं मोर
 
रह-रह
 
रात को ।
 
रात को
 
रह-रह ।
 
बहुत गहरे ।
 
बहुत गहरे ।
 अँधेरे अंधेरे में । 
नींद के इन
 
किन कपाटों
 
बीच ।
 
रह-रह
 
बोलते हैं--
 
रात को ।
</poem>
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