भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
बोलते हैं मोर
रह-रह
रात को ।
रात को
रह-रह ।
बहुत गहरे ।
बहुत गहरे ।
नींद के इन
किन कपाटों
बीच ।
रह-रह
बोलते हैं--
रात को ।
</poem>