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माँ / कुँअर बेचैन

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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
 <Poem>
माँ!
 
तुम्हारे सज़ल आँचल ने
 
धूप से हमको बचाया है।
 
चाँदनी का घर बनाया है।
 
तुम अमृत की धार प्यासों को
 
ज्योति-रेखा सूरदासों को
 
संधि को आशीष की कविता
 
अस्मिता, मन के समासों को
 
माँ!
 
तुम्हारे तरल दृगजल ने
 
तीर्थ-जल का मान पाया है
 
सो गए मन को जगाया है।
 
तुम थके मन को अथक लोरी
 
प्यार से मनुहार की चोरी
 
नित्य ढुलकाती रहीं हम पर
 
दूध की दो गागरें कोरी
 
माँ!
तुम्हारे प्रीति के पल ने
 
आँसुओं को भी हँसाया है
 
बोलना मन को सिखाया है।
</poem>
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