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कुछ मुक्तक (ज़िन्दगी पर) / रमा द्विवेदी
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15:04, 5 जनवरी 2009
कौन सी यह सभ्यता है,<br>
कुछ समझ आता नहीं।<br>
खुश यहाँ कोई नहीं,
<br>
<br>बस मिट रही है ज़िन्दगी ॥
<br>
<br>
Ramadwivedi
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