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जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह
::::बौखला उठे थे दुर्निवार,
तब एक समंदर के भीतर
:रवि की उद्भासित छवियों का ::गहरा निखार
स्वर्णिम लहरों सा झल्लाता
:झलमला उठा;
मानो भीतर के सौ-सौ अंगारी उत्तर
:सब एक साथ ::बौखला उठे :::तमतमा उठे !!
संघर्ष विचारों का लोहू
:पीड़ित विवेक की शिरा-शिरा ::में उठा गिरा,
मस्तिष्क तंतुओं में प्रदीप्त
:वेदना यथार्थों की जागी !!
मेरे सुख-दुख ने अकस्मात् भावुकतावश
:सुख-दुख के चरणों की ::मन ही मन :::यों की 'पालागी' —
कण्ठ में ज्ञान संवेदन के,
जिस में जन-जन के घर-आंगन
:का सूरज भासमान छाया
झुरमुर-झुरमुर वह नीम हँसा,
:चिड़िया डोली,
फर-फर आंचल तुमको निहार
जन-संघर्षों की राहों पर
:ज्वालाओं से
माँओं का बहनों का सुहाग सिन्दूर हँसा बरसा-बरसा ।
इन भारतीय गृहिणी-निर्झरिणी-नदियों के
:घर-घर के भूखे प्राण हँसे ।
दिल के आंसू के फव्वारे
:लेकिन यह मेरे छन्द
बावरे बुरी तरह यों अकुलाकर,
बूढ़े पितृश्री के चरणों में लोट-पोटकर,
:ऐसी पावन धूल हुए —
बहना के हिय की तुलसी पर
घन छाया कर
:मंजरी हुए,
भाई के दिल में फूल हुए ।
अम्बर में चमक रही बहन-बिजली ने भी
:थी ताकत हिय में सरसायी ।
घर-घर के सजल अंधेरे से
जन-संघर्षों की राहों पर
:गम्भीर घटाओं ने ::युग जीवन सरसाया ।
आंसू से भरा हुआ चुम्बन मुझपर बरसाया ।
नव-वधुका बन
:यह बुद्धिमती
ऐसी तेरे घर आयी है ।
रे, स्वयं अगरबत्ती से जल,
:सुगंध फैला ::जिन लोगों ने
अपने अंतर में घिरे हुए
गहरी ममता के अगुरू-धूम
::के बादल सी
मुझको अथाह मस्ती प्रदान की
:वह हुलसी, वह अकुलायी
इस हृदय-दान की वेला में मेरे भीतर ।
जिनके स्वभाव के गंगाजल ने,
:युगों-युगों को तारा है,
जिनके कारण यह हिन्दुस्तान हमारा है,
जिन लाखों हाथों-पैरों ने यह दुनिया
::पार लगायी है,
जिनके कि पूत-पावन चरणों में
::हुलसे मन — ::से किये निछावर जा सकते :::सौ-सौ जीवन,
उन जन-जन का दुर्दान्त रुधिर
उनकी बाहों को अपने उर पर
:धारण कर वरमाला-सी
उनकी हिम्मत, उनका धीरज,
मँडराता है मेरा जी चारों ओर सदा
::उनके ही तो ।
यादें उनकी
मानो कि गीत के
:किसी विलम्बित सुर में —
उनके घर आने की
:बेर-अबेर खिली,
क्रान्ति की मुस्कराती आँखों —
दुबली चम्पा
:जन संघर्षों में ::गदरायी,
खण्डर-मकान में फूल खिले, तल में बिखरे
जीवन संघर्षों में घुमड़े
::उमड़े चक्की के गीतों में
कल्याणमयी करुणाओं के
प्रातः कालीन हवाओं में ।
::सूरज का लाल-लाल चेहरा
डोला धरती की बाहों में,
उस घास-भरे जंगल-पहाड़-बंजर में
:यों दावाग्नि लगी
मानो बूढ़ी दुनिया के सिर पर आग लगी
यह अग्नि-विश्वजित् फैली है जिन लोगों की
:::रे नौजवान,
इतिहास बनानेवाला सिर करके ऊंचा
भौहों पर मेघों-जैसा
:विद्युत भार :विचारों का लेकर
पृथ्वी की गति के साथ-साथ घूमते हुए
तल में
:ज्यों रत्न-द्वीप जलते
त्यों जन-जन के अनपहचाने अन्तस्तल में
मानो जीवन सरिता
:जलते कूलोंवाली,
इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों
संघर्षों के उत्साहों में
:जाने क्या-क्या सहते रहते ।
लहरों की ग्रीवा में सूरज की वरमाला;
जमकर पत्थर बन गए दुखों-सी
:धरती की प्रस्तर-माला
जल-भरे पारदर्शी उर में !!
जन-जन के पुत्रों के हिय में
:मचले हिन्दुस्तानी झरने ::मानव युग के ।
लहरों में लहराती धरती
:की बाहों ने
बिम्बित रवि-रंजित नभ को कसकर चूम लिया,
ऐसा संघर्षी वर्तमान —
:तुम भी तो हो,
मानव-भविष्य का आसमान —
:तुममें भी है,
मानव-दिगन्त के कूलों पर
जिन लक्ष्य अभिप्रायों की दमक रही किरनें
:वे अपनी लाल बुनावट में :जिन कुसुमों की आकृति बुनने :के लिए विकल हो उठती हैं —
उसमें से एक फूल है रे, तुम जैसा हो,
जिन किरनों का ताना-बाना
:उस रश्मि-रेशमी :क्षितिज-क्षोभ पर अंकित
नतन-व्यक्तित्वों के सहस्र-दल स्वर्णोज्ज्वल —
जन-जन के संघर्षों में विकसित
:परिणत होते नूतन मन का । ::वह अन्तस्तल . . . . . .
क्रमशः...
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