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जब प्रश्न-चिह्न बौखला उठे / गजानन माधव मुक्तिबोध
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06:59, 7 जनवरी 2009
जिसने मेरे भीतर की चट्टानी ज़मीन
अपनी विद्युत से यों खो दी, इतनी रन्ध्रिल कर
की
दी कि
अरे
उस अन्धकार भूमि से अजब
Eklavya
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