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चीख़ / अशोक वाजपेयी

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|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
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यह बिल्कुल मुमकिन था
:अंधेरा था
:इमारत की उस काई -भीगी दीवार पर,
:कुछ ठंडक-सी भी
:और मेरी चाहत की कोशिश से सटकर
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