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अहमद फ़राज़ / परिचय

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*इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं<br> क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं<br>
<br>*दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला<br>वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला <br><br>#*वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से<br>क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्श-ए-पा कोई नहीं<br><br>*करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे<br>ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे <br><br>*जो भी दुख याद न था याद आया<br>आज क्या जानिए क्या याद आया<br>याद आया था बिछड़ना तेरा<br>फिर नहीं याद कि क्या याद आया<br><br>*तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो<br>अब हो चला यक़ीं के बुरे हम हैं दोस्तो<br>कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-बुझा<br>कुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो <br><br>*अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें<br>जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें<br>ढूँढ उजड़े हु्ए लोगों में वफ़ा के मोती<br>ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें<br>तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा<br>दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें.<br>
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