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Kavita Kosh से
भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-विरंगे बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
अबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदे बूँदें इसमें मुसकाती हैं
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