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माँ / श्रीनिवास श्रीकांत

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|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत
|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
}}
<poem>
माँ
घर में होती है एक औरत
जिसे कहते हैं माँ
एक ऐसा जनन वृक्ष है माँ
पीपल और बरगद से भी
ज्य़ादा ज़्यादा पूजनीय
बड़ा
जिसने पार कीं
लालान्तर नदियाँ
काल के
अन्धेरे अँधेरे अन्तराल
सात धातुएँ तो हैं