Changes

चेतक बन गया निराला था<br>
राणाप्रताप के घोड़े से <br>
पड़ गया हवा का पाला था <br><br>
गिरता न कभी चेतक तन पर<br>
राणाप्रताप का कोड़ा था<br>
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर<br>
वह आसमान का घोड़ा था <br><br>
बढते नद सा वह लहर गया<br>
भाला गिर गया गिरा निसंग<br>
बैरी समाज रह गया दंग <br>
घोड़े का डेख देख ऐसा रंग<br><br>
''इस रचना को कविता कोश के लिये अनुनाद सिंह ने भेजा।<br><br>''