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कुफ़्र / अमृता प्रीतम
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21:24, 7 मार्च 2010
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आज हमने एक दुनिया बेची
आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक
घूंट
घूँट
चाँदनी पी ली
यह जो एक घड़ी हमने
अनिल जनविजय
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