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Kavita Kosh से
तुमसे चाह रहा था कहना!
जैसे मैदानों को आसमान,
कुहरे की मेघों की आशा भाषा त्याग
बिचारा आसमान कुछ
रूप बदलकर रंग बदलकर कहे।
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