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छीन कर तलवार पहना दी सुनहरी चूड़ियाँ
र्ख रख दिया हर जोड़ पर ज़ेवर का एक बारे-गिराँ
दर्स आज़ादी का का देती क्या तुझे आग़ोध में
मै तो ख़ुद ही क़ैद थी इक मजलिसे-गुलपोश में
मैने मैंने दानिस्ता बनाया ख़ायफ़ो-बुज़दिल तुझे
मैंने दी कमहिम्मती की दावते-बातिल तुझे
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