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<poem>
रविवार की सुबह
 
उस औरत ने
बड़ी मुश्किल से
 
पति और बच्चों को जगाया
किसी को ब्रश
किसी को बनियान
 
किसी को तौलिया थमाया
चूल्हे के सामने खड़ी
 
जैसे चौखटे में जड़ी
 
बड़े के लिए लिए परांठे
 छोटों को ऑमलेट
’उनके’ लिए कम नमक वाला
 
सासु के लिए नरम
 
ससुर के लिए गरम
 
अलग अलग अलग
 
नाश्ते बना रही है
 
और उसकी सासु माँ
 
चौपाईयाँ गा रही है
 
टी-वी. पर
 
रामायण आ रही है
उसके कॉमरेड पति
अहिल्या के मुक्ति प्रसंग पर
 
भाव विह्वल होते हुए
 
बलिहारी जा रहे हैं
और छोटे को आवाज़ लगाकर
 
अपना नाश्ता
 टी. वी. वाले कमरे  में मंगवा रहे हैं
एकाएक
 
वह औरत
 
रसोई की खिड़की से
 
लल्लन को देखती है
 
चिल्लाकर कोसती है
 
और पलक झपकते
 
करघी लहराहते हुए
उसे जा दबोचचती है।
उसे जा दबोचचती है।
हड़बड़ा कर उठते हुए
 
पिताजी को लगता है
 
कि वे सभी
 
रामायण देखते हुए
 
सो रहे थे
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