भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
एक धब्बा धडकनों तक जाकर
फैलता जा रहा है
यहाँ बाहर कितनी साड़ी सारी रेत बिछी है
और फूलों के बीज
कसी हुई मुट्ठी के पसीने में नहा रहे हैं
शायद तुम्हारे समय के क्षितिज पर
कोई सूर्यमुखी फूल हँसता हुआ मिले...
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,142
edits