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दाने / केदारनाथ सिंह

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|रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह
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[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
नहीं
हम मण्डी नहीं जाएंगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने॔
जाएंगे तो फिर लौटकर नहीं <br>हम मण्डी नहीं जाएंगे<br>आएंगेखलिहान से उठते हुए<br>जाते- जातेकहते जाते हैं दाने॔<br><br>दाने
जाएंगे अगर लौट कर आये भीतो फिर लौटकर तुम हमे पहचान नहीं आएँगे<br>पाओगेजाते- जाते<br>अपनी अन्तिम चिट्ठी मेंकहते जाते लिख भेजते हैं दाने<br><br>
अगर लौट कर आये भी<br>इसके बाद महीनों तकतो तुम हमे पहचान नहीं पाओगे<br>बस्ती में अपनी अन्तिम कोई चिट्ठी में<br>लिख भेजते हैं दाने<br><br>नहीं आती।
इसके बाद महीनों तक<br>'''रचनाकाल : 1984बस्ती में <br/poem>कोई चिट्ठी नहीं आती।<br><br> 1984
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