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मैं क्षितिज भ्रकुटि पर घिर धूमिल,<br>
चिंता का भार बनी आविरलअविरल,<br>
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,<br>
नव जीवन अंकुर बन निकली!<br><br>
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