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नीर भरी दुख की बदली / महादेवी वर्मा
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05:35, 13 मई 2007
मैं क्षितिज भ्रकुटि पर घिर धूमिल,<br>
चिंता का भार बनी
आविरल
अविरल
,<br>
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,<br>
नव जीवन अंकुर बन निकली!<br><br>
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Ramadwivedi