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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञान प्रकाश विवेक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ये कारवाने वक़्त कसक छोड़ जाएगा
हर रास्ते पे अपने सबक़ छोड़ जाएगा

मारोगे तुम गुलेल परिन्दे को और वो
ड़ते हुए भी अपनी चहक छोड़ जाएगा

जु
गनू की सादगी का मैं कैसे करूँ बयाँ
मर जाएगा मगर वो चमक छोड़ जाएगा

है चाँद तो लिक्खेगा मेरे हाथ पर नमन
आकाश है तो अपना उफ़क छोड़ जाएगा

उतरेगा बादलों की तरह लम्स जब तेरा
मेरी हथेलियों पे धनक छोड़ जाएगा

बारूद बन के आएगा वो मेरे घर कभी
कुछ दे न दे पर अपनी धमक छोड़ जाएगा

तू मानता है अपना मुकद्दर जिसे विवेक
ज़ख़्मों पे तेरे वो भी नमक छोड़ जाएगा.


</poem>
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