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दंश / रेखा

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कौन गाड़ गया है
देवदार के तने में
कुल्हाड़ी
पसलियों में चुभ रहा है
एक पैना दाँत
कौन चलाता रहा है
अँधेरे में छिपकर
घर की नीवों कुदाली
हड्डियों में
घुल रहा है अब के
बरसात का पानी
रात गये
दरवाज़े तक आ-आकर
लौट जाती है एक सनसनाती हुई नदी
बालू तट की तरह
पसीजा रहता है तन
पसलियों में दाँत
फूट रहा ऐ बीज की तरह
टोहने लगा है
अपनी रेशा-रेशा जड़ों से त्वचा के रोम-रोम
मिट्टी हो रही है देह
अशुभ कहा जाता है
दीवारों में पीपल का उगना।
</poem>
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