Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत |संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
<Poem>

गदराई
गंदम ने
खोल दिया
केशपाश

जूड़ा
जो संयम का
बांधा था
लाज की पालकी को
लक्ष्मण का
कांधा था
दूर हुआ
बिखर गया
मुग्धा का
मदिर हास

देह को
बाँध-बाँध
रखने के यत्न लुटे
आँखों से ताँक-झाँक
करने के
स्वप्न जुटे
गोरी के यौवन का
शत्रु हुआ
श्वास-श्वास

रोम-रोम
बासन्ती
भाषाएँ बोल रहा
काम
रंग-रोली
ले पिचकारी
डोल रहा
जागी सुधियों का
स्पर्श
लहरा गया
आस-पास

</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits