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13:57, 24 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
भूलते न क्षण प्रियतम इंगित से तुमने मुझे बुलाया था।
प्राणेश्वरि! मत छोड़ना मुझे यह कहकर बहुत रुलाया था।
सुधि करो प्राण! रस-रंजित निशि में अवगुंठन-पट खींचा था ।
मृदु मदिर अधर पर 'पंकिल'-उर का प्रणय-पयोधि उलीचा था।
पूछा " भाती न उषा, संध्या पर क्यों बलिहारी होती हो ?
नीरव निशीथ में मधु शैय्या पर श्रद्धा-सुमन संजोती हो ?"
क्या कहे विराट प्राण ! बौनी बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥ १७॥
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