भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात<br>मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात<br>
और क्या चाहिय अब ये दिले मजरूह तुझे<br>उसने देखा तो बन्दाज़े दीगर आज की रात<br>
फूल क्या खार भी है आज गुलिस्ता बकिनार<br>संग्राज़ है निगाहों में गुहार आज की रात<br>
महवे गुल्गासत है ये कौन मेरे दोष बदोश<br>कहकहा बन गयी हर राहगुज़र आज की रात<br>
फूट निकला दरो दीवार से सैलाब निशात<br>