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<br>पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।<br><br>
<br>दो0-श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
<br> बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
<br>जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
<br>भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।। १ ।।
<br>आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।<br><br>
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।<br>
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।। १।।<br><br>
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।<br>
तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।। २।। <br><br>
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।।<br>
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।।३।।<br><br>
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।<br>
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।४।। <br><br>
दो0-यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।<br>
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।<br><br>
फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार।।3।।<br><br>
सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।<br>
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।। १ ।। <br><br>
मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।।<br>
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।२ ।।<br><br>
पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ।। <br>
सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।।३।।<br><br>
सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं।। <br>
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।<४।।br><br>
दो0-बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।<br>
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।<br><br>
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।<br>
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।। १ ।। <br><br>
जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।२ ।।< br>
मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।। <br>
बिनती सचिव करहि कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी।।३।।<br><br>
जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।।<br>
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।४।। <br>
राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ।।5।।<br><br>
हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी।।<br>
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।। १ ।। <br><br>
चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती।।<br>
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका।।२ ।।<br><br>
बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना।।<br>
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।३।।<br><br>
रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू।।<br>
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।।४।।<br><br>
दो0-ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग।<br>
सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग।।6।।<br><br>
जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा। सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा।।<br>
बिप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम हित मंगल काजा।।<br>
रामहि बंधु सोच दिन राती। अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती।।<br>
दो0-एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु।<br>
सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु।।7।।<br><br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।।<br>
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।।<br>
गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं।।<br>
दो0-राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि।<br>
लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि।।8।।<br><br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।।<br>
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।<br>
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।<br />
दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<br />
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।<br />
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सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती।।<br />
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