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{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
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[[Category:कविता]]
<poem>
एक सूरज के थकने के संग
जात उठी ऊँघती हात
चक रही है ढीली खाट
चाय के गिलासों से दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के -बूढ़े.
दिन भर की ख़बरों को खँगालते
चन्द अधेड़
राजनीति के चटखारे लेते
दो-चाह गिरगिट
लाचार अशिक्षित
जागा है आधी रात तक
हाट मेरे गाँव का
सूरज थकने के बाद.
</poem>
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