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सूरज थकने के संग-१ / सरोज परमार
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12:39, 29 जनवरी 2009
एक सूरज के थकने के संग
कितना कुछ थक गया.
थक
गई
गईं
चिड़ियाँ
थक गईं लड़कियाँ
जुगाली पड़ी गैया.
उसकी सोच नहीं थकी
टँग गई हैं उसकी आँखे
विग्ज़्त
विगत
और आगत के छोरों पर
टंगी
टँगी
रहेंगी.
पौ फटने तक.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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