भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
लेखिका: [[महादेवी वर्मा]]
[[Category:महादेवी वर्मा]]
प्रिय चिरन्तन है सजनि,<br>
क्षण क्षण नवीन सुहागिनी मैं!<br><br>
श्वास में मुझको छिपा कर वह असीम विशाल चिर घन,<br>
शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,<br>
छिप कहाँ उसमें सकी<br>
बुझ-बुझ जली चल दामिनी मैं!<br><br>
छाँह को उसकी सजनि नव आवरण अपना बना कर,<br>
धूलि में निज अश्रु बोने मैं पहर सूने बिता कर,<br>
प्रात में हँस छिप गई<br>
ले छलकते दृग यामिनी मैं!<br><br>
मिलन-मन्दिर में उठा दूँ जो सुमुख से सजल गुण्ठन,<br>
मैं मिटूँ प्रिय में मिटा ज्यों तप्त सिकता में सलिल-कण,<br>
सजनि मधुर निजत्व दे<br>
कैसे मिलूँ अभिमानिनी मैं!<br><br>
दीप-सी युग-युग जलूँ पर वह सुभग इतना बता दे,<br>
फूँक से उसकी बुझूँ तब क्षार ही मेरा पता दे!<br>
वह रहे आराध्य चिन्मय<br>
मृण्मयी अनुरागिनी मैं!<br><br>
सजल सीमित पुतलियाँ पर चित्र अमिट असीम का वह,<br>
चाह वह अनन्त बसती प्राण किन्तु ससीम सा यह,<br>
रज-कणों में खेलती किस<br>
विरज विधु की चाँदनी मैं?<br>
[[Category:महादेवी वर्मा]]
प्रिय चिरन्तन है सजनि,<br>
क्षण क्षण नवीन सुहागिनी मैं!<br><br>
श्वास में मुझको छिपा कर वह असीम विशाल चिर घन,<br>
शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,<br>
छिप कहाँ उसमें सकी<br>
बुझ-बुझ जली चल दामिनी मैं!<br><br>
छाँह को उसकी सजनि नव आवरण अपना बना कर,<br>
धूलि में निज अश्रु बोने मैं पहर सूने बिता कर,<br>
प्रात में हँस छिप गई<br>
ले छलकते दृग यामिनी मैं!<br><br>
मिलन-मन्दिर में उठा दूँ जो सुमुख से सजल गुण्ठन,<br>
मैं मिटूँ प्रिय में मिटा ज्यों तप्त सिकता में सलिल-कण,<br>
सजनि मधुर निजत्व दे<br>
कैसे मिलूँ अभिमानिनी मैं!<br><br>
दीप-सी युग-युग जलूँ पर वह सुभग इतना बता दे,<br>
फूँक से उसकी बुझूँ तब क्षार ही मेरा पता दे!<br>
वह रहे आराध्य चिन्मय<br>
मृण्मयी अनुरागिनी मैं!<br><br>
सजल सीमित पुतलियाँ पर चित्र अमिट असीम का वह,<br>
चाह वह अनन्त बसती प्राण किन्तु ससीम सा यह,<br>
रज-कणों में खेलती किस<br>
विरज विधु की चाँदनी मैं?<br>