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11:10, 6 जुलाई 2006 लेखिका: [[महादेवी वर्मा]]
[[Category:महादेवी वर्मा]]
सब बुझे दीपक जला लूं<br>
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं <br><br>
क्षितिज कारा तोडकर अब <br>
गा उठी उन्मत आंधी, <br>
अब घटाओं में न रुकती <br>
लास तनमय तडित बांधी, <br>
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं! <br><br>
भीत तारक मंदते द्रग <br>
भ्रान्त मारुत पथ न पाता, <br>
छोड उल्का अम्क नभ में <br>
ध्वंस आता हरहराता<br>
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!<br><br>
लय बनी म्रदु वर्तिका<br>
हर स्वर बना बन लौ सजीली,<br>
फैलती आलोक सी <br>
झंकार मेरी स्नेह गीली <br>
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!<br><br>
देखकर कोमल व्यथा को <br>
आंसुओं के सजल रथ में,<br>
मोम सी सांधे बिछा दीं<br>
थीं इसी अम्गार पथ में<br>
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार मैं उनको सुला लूं!<br><br>
अब तरी पतवार लाकर <br>
तुम दिखा मत पार देना,<br>
आज गर्जन में मुझे बस <br>
एक बार पुकार लेना<br>
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!<br>
आज दीपक राग गा लूं!<br><br>